मेरी कविता- “चंद्र”

नित्य गगन की करो सवारी
चन्द्र तुम्हारी बात है न्यारी

नया रोज रूप तुम धरते
प्रेम उपासक तुम पर मरते
है मामा बतलाती महतारी
चंद्र तुम्हारी बात है न्यारी

लाख सितारे रंग हैं भरते
सारे जगत को जगमग करते
रैन की तुम बिन सूनी अटारी
चंद्र तुम्हारी बात है न्यारी

धवल तुम्हारा रूप रंग है
महादेव का श्रृंगार अंग हैं
सोलह कलाओं के अधिकारी
चंद्र तुम्हारी बात है न्यारी

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About alokdilse

भारतीय रेलवे में यात्री गाड़ियों के गार्ड के रूप में कार्यरत.. हर वर्ष नए वृक्ष लगाने का शौक.. जब मन् भावुक हो जाता है , लिखना आरम्भ कर देता हूँ। ईश्वरवादी, राष्ट्रवादी और परम्परावादी हूँ। जियो और जीने दो में यकीन है मेरा।
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